निश्चित तौर पर आज के दौर में हर इंसान सफलता के शिखर पर पहुंचना चाहता है। और पहुंचना भी चाहिए। क्योंकि मनुष्य योनि का संबंध कर्म से है। महिला हो या पुरुष सभी सफल होना चाहते हैं। क्योकी आज के दौर में किसी व्यक्ति के सामाजिक स्तर का विश्लेषण, उसके सफलता के स्तर के आधार पर ही होता है।
वास्तव में आज अनसक्सेस डिप्रेशन का बड़ा कारण है। गलत समय पर गलत निर्णय लेना, दूसरों की नकल करना आदि अनसक्सेस का प्रमुख कारण है। जरूरी नहीं है कि आप भी उसी कार्य क्षेत्र में सफल हो जिसमें दूसरा सफल हो रहा है। सभी का भाग्य अलग अलग है इसलिए अपनी रूचि के अनुसार एवं वास्तु के नियमों को ध्यान में रखते हुए अपने प्रोफेशन का चयन करना होगा। Read More….
सबसे पहले पूर्व दिशा के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार यह दिशा प्रकाश, ज्ञान और चेतना का स्रोत है। सूर्य इस दिशा में उदित होकर सभी प्राणियों में स्फूर्ति व ऊर्जा का संचार करते हैं। इंद्र इस दिशा के देवता है, और सूर्य ग्रह।
पूजा, ध्यान चिंतन एवं अन्य बौद्धिक कार्य पूर्व की ओर मुख करके करने से इनकी गुणवत्ता बढ़ जाती है। इस दिशा की और खुलने वाले द्वार वाले भवन को सर्वोत्तम माना गया है।
प्रातः काल पूर्व दिशा से आने वाली हवा का घर में बिना रुकावट प्रवेश होना चाहिए ताकि सारा घर पॉजिटिव एनर्जी से भरपूर हो जाए।
अब हम आग्नेय दिशा के बारे में बात करते हैं। अग्नि इसके देवता है और शुक्र ग्रह। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस दिशा में जलाशय नहीं होना चाहिए। इस दिशा में रसोई होना शुभ है।
आग्नेय दिशा में उच्च भूमि धनदायक मानी गई है। इस दिशा की ओर मुंह करके गंभीर चिंतन कार्य नहीं करना चाहिए।
अब हम बात करते हैं दक्षिण दिशा की। यह स्थिरता की दिशा कहलाती है। इस दिशा के देवता यम है और मंगल ग्रह।
वास्तु शास्त्र के अनुसार यह दिशा सबसे अशुभ मानी गई है। परंतु इस दिशा की ओर सिर करके सोना स्वास्थ्यवर्धक एवं शांति दायक होता है।
इस और भूमि ऊंची हो तो वह सब कामनाएं संपूर्ण करती है, और स्वास्थ्य वर्धक होती है। भवन कभी भी दक्षिण की ओर नहीं खुलना चाहिए। बल्कि इस दिशा में शयन कक्ष होना उत्तम माना गया है।
अब हम बात करते हैं दक्षिण पश्चिम दिशा की। नैऋत्य नामक राक्षस इस दिशा का स्वामी है। और राहु केतु इस दिशा के ग्रह माने गए हैं।
वास्तु शास्त्र के अनुसार यह दिशा भी कुछ शुभ नहीं है। परंतु गृह स्वामी और स्वामीनी का निवास स्थान इसी दिशा में होने से उनका अधिकार बढ़ता है।
संभवतः यह इस बात का संकेत है कि शासक की तरह ग्रह स्वामी को भी अवांछित एवं शरारती तत्वों पर नियंत्रण रखना चाहिए।
इस दिशा में भी द्वार नहीं होना चाहिए। इस दिशा में जल प्रवाह प्राण घातक एवं कलहकारक व क्षयकारक माना गया है। इस दिशा में शौचालय, भंडार ग्रह होना उचित माना जा सकता है
अब हम पश्चिम दिशा के बारे में बात करते हैं। वरुण इसके देवता है एवं शनि ग्रह।
यह सूर्यास्त की दिशा है। इसलिए वास्तु शास्त्र के अनुसार पश्चिम मुख होकर बैठना मन में अवसाद एवं डिप्रेशन पैदा करता है।
इस दिशा में बैठकर भोजन करना उत्तम है। इस दिशा में सीढ़ियों, कुआं आदि हो सकते है। पश्चिम की ओर सिर करके सोने से प्रबल चिंता घेर लेती है।
अब वायव्य दिशा के बारे में जानकारी लेते हैं। इस दिशा के देवता वायु है एवं चंद्रमा ग्रह। वास्तु शास्त्र के अनुसार यह दिशा चंचलता का प्रतीक है।
इस दिशा की ओर मुख करके बैठने से चंचलता आती है और एकाग्रता नष्ट होती है।
जिस कन्या के विवाह में विलंब हो रहा हो, उस कन्या को इस दिशा में निवास करना चाहिए। जिससे उसका विवाह शीघ्र हो जाए।
दुकान आदि प्रतिष्ठान वायव्य दिशा में होने से ग्राहकों का आवागमन बढ़ेगा तथा सामान जल्दी बिकेगा। ध्यान, चिंतन एवं पठन-पाठन के लिए यह दिशा उचित नहीं मानी गई है।
अब हम उत्तर दिशा के बारे में बात करते हैं। कुबेर तथा चंद्र इसके देवता है एवं बुध इसका ग्रह। वास्तु शास्त्र के अनुसार यह दिशा शुभ कार्यों के लिए उत्तम मानी गई है।
पूजन, ध्यान, चिंतन आदि समस्त कार्य उत्तर मुखी होकर करना चाहिए। धन के देवता कुबेर की दिशा होने के कारण इस दिशा की ओर द्वार समृद्धि दायक माना गया है।
देवघर भंडार और धन ग्रह का स्थान इसी दिशा में होना चाहिए। इस और जलाशय का होना अति उत्तम माना गया है। कुआं आदि भी इस और हो सकता है।
पर कभी भी इस और सिर करके नहीं सोना चाहिए।
अब हम ईशान दिशा के बारे में जानते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार यह सबसे प्रमुख दिशा मानी जाती है। इसके देवता भगवान शंकर हैं, और ग्रह बृहस्पति हैं।
दसों दिशाओं में यह सर्वोत्तम दिशा है। यह ज्ञान और समृद्धि का मेल है।
इस और द्वार होना सबसे अच्छा होता है। इस ओर से चलने वाली वायु सारे घर को सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है।
पूजा स्थान इसी दिशा में होना चाहिए। जल स्थान, बगीचा इस दशा के प्रभाव को बढ़ा देते हैं। और घर में सुख समृद्धि लाते है।
दोस्तों हमने सभी दिशाओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त की। वास्तु शास्त्र के अनुसार निर्धारित दिशाओं की ऊर्जा का सही उपयोग कर, अपने जीवन में सुख शांति और समृद्धि को बहुत ही आसानी से बढ़ाया जा सकता है।