आयुर्वेद विश्व के सबसे पुरातन चिकित्सा विज्ञान मे से है। जिसमें Ayurveda, Vata dosha, Kapha dosha, Pitta dosha and Ayurveda treatment आदि के बारे में बताया गया है। लगभग 5000 वर्ष पूर्व भारतीय ऋषि मुनियो नें गहन मेडीटेशन और आध्यात्मिक अभ्यास द्वारा मानव के शरीर विज्ञान, स्वास्थ एवं प्रकृति का अध्ययन किया और एक चिकित्सा पद्धति का विकास किया। जिसे आयुर्वेद के नाम से जाना गया। एक गहन चिकित्सा विज्ञान है आयुर्वेद। आयुर्वेद हमें यह बताता है, कि शरीर को निरोग कैसे रखें और रोग होने पर रोग मुक्त कैसे हों, उसके उपाय क्या है। आयुर्वेद के अनुसार जीवनशैली अपनाने पर जीवन खुशहाल एवं दीर्धायु बनाया जा सकता है। क्योकि यह मात्र चिकित्सा पद्धति नही है, जीवन का पूरा विज्ञान है। जो हमें अपनी पूण मानवीय क्षमताओं को पहचान कर उसके अनुसार पूर्ण क्षमता से जीवन जीना सिखाता है। यह बीमारी में ठीक होने, स्वस्थ में स्वास्थ्य को बनाये रखने एवं दीर्धायु ओर खुशहाल जीवन का सशक्त माध्यम है।
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मनुष्य जीवन शरीर, मन, इंद्रियों और आत्मा का संयोजन है। आयुर्वेद हमें यह बताता हे कि, यह सभी आपस में जुड़े हुए है। इनमें से किसी का भी असंतुलन हमें स्वास्थ्य विकार के रूप में देखने को मिलता है। अतः स्वस्थ रहने के होने के लिये उपचार, विचार, भावनाओं एवं शारीरिक क्रियाओं के बीच तालमेल होना जरूरी है। इन सभी के बीच तलमेल सही रखने का प्रयास अत्यंत आवश्यक हेता है, तभी आप स्वस्थ ओर दीर्धायु जीवन जी सकते है। आयुर्वेद हमे अपनी दैनिक एवं मौसमी दिनचर्या, आहार, व्यवहार और इंद्रियों के उपयोग के बारे में एक विस्त्रत नियम संयम सिखात है। खासकर जब दुनिया भर में मनुष्य तनाव, चिंता, निराशा और पुरानी बीमारीयों से जूझ रहा है, आयुर्वेद हमारे लिये स्वस्य, उल्हास पूर्ण एवं दीर्धायु जीवन जीने का साधन बन सकता है। इसमे हर्बल दवाओं के साथ ही मनुष्यो के सामाजिक, मनोवेज्ञानिक, नैतिक, आध्यातमिक और बौद्धिक जीवन को भी संतुलित करना सिखाया जाता है।
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आयुर्वेद के अनुसार सम्पूण प्रकृति पाँच तत्वो जल, पृथ्वी, आकाश, वायु एवं अग्नि से मिलकर बनी है। किसी भी पदार्थ मे एक या दो तत्व दूसरों से ज्यादा प्रतिशत में होते है। उसी के अनुसार उस पदार्थ की प्रकृति या गुण निर्धारित होता है। यह मानते हुए कि मनुष्य प्रकृति का हिस्सा हे, आयुर्वेद में तीन दोषों का वर्णन है, जो हमारी बाहरी और आंतरिक अवस्था को नियंतरित करते है। जिन्हे Vata Dosha (वायु), Pitta Dosha (आग) एवं Kapha Dosha कहा जाता है। प्रत्येक मनुष्य का स्वभाव या प्रकृति इन्ही तत्वों के एक खास अनुपात के अनुसार ही निश्चित होता है। जैसे पित्त हमारी प्रकृति में प्रमुख हे, तो हम कुशाग्र बुद्धी, लक्ष्य प्राप्त करने को तत्पर और जीवन के प्रति गहन लगाव रखने वाले होते है। पित्त दोष पाचन, चयापचय और ऊर्जा उत्पादन को नियंत्रित करता है। यदि वात प्रमुख है, तो हम पतले, हल्के, उत्साही, ऊर्जावान एवं परिवर्तनशील होते है। यह रक्त से हानीकारक तत्वों को अलग करने, शरीर के अवयवों की गतिविधी एवं मस्तिष्क के विचार प्रभाव को नियंत्रित करता है। इसी प्रकार यदि कफ प्रमुख है, तो हम सरल, सुव्यवस्थित एवं पालन करने वाले होते है। यह वजन वृद्धि, सभी सात उतकों का निर्माण , पोषक द्रव्य, रक्त, वसा, हड्डीयों, माँस पेशियों, मज्जा और प्रजनन उतकों को नियंत्रित करता है। ऋषि चरक के अनुसार Vata dosha, Kapha dosha, Pitta dosha इन तीन दोषों का उचित मात्रा मे होना आरोग्य और असन्तुलन ही रोग है। इसे इस प्रकार समझ सकते हे, जैसे जब पित्त संतुलित है, तो व्यक्ति गर्म, मित्रवत, अनुशासित, एक अच्छा नेता और वक्ता होता है। जब पित्त असंतुलित होता हे, तो व्यक्ति चिड़चिड़ा, अत्यधिक शारीरिक गर्मी, अपच एवं सूजन से पीड़ित हो सकता है। जब वात असंतुलित होता हे, तो व्यक्ति चिन्ता, थकान, अनिंद्रा, शुष्क त्वचा, उच्च रक्तचाप, कब्ज और एकाग्रता की कमी से पीड़ित होता है। जब कफ असंतुलित होता हे, तो व्यक्ति वजन बढ़ना, आलस्य, मधुमेह, अस्थमा, अवसाद और सायनस से पिड़ित हो सकता है।
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आयुर्वेद रोग का उपचार ही नही करता बल्कि यह हमें जीवन जीने का सुव्यवस्थित तरीका सिखाता हे, ताकि हमारा जीवन लम्बा और खुशहाल हो। आयुर्वेद का सिद्धान्त ही स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा तथा रोगी व्यक्ति की रोग से रक्षा है।
स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिये, रोग होने के बाद रोगी व्यक्ति के विकारों को दूर कर उन्हे स्वस्थ करने के लिये आयुर्वेद मे हर्बल उपचार, आयुर्वेदिक दवायें, आहार संशोधन, मालिश, घरेलू उपचार और ध्यान का प्रयोग किया जाता है। जिसे चार भागो मे विभाजित किया जा सकता है। आयुर्वेद चिकित्सा वर्तमान समय मे बहुत ही लाभ दायक चिकित्सा पद्धति है। आयुर्वेद चिकित्सा के उपरांत व्यक्ति की शारीरिक ही नही अपितु मानसिक स्थिति मे भी सुधार होता है। आयुर्वेदिक औसधियों के अधिकांस घटक सरलता से उपलब्ध जड़ी बूटियों, पौधो एवं फलों से प्राप्त की जाती हे, अतः आयुर्वेदिक चिकित्सा अपेक्षाकृत सस्ती है।
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वर्तमान समय की अस्त व्यस्त जीवनशैली मे परिवर्तन कर, आयुर्वेद के अनुसार भोजन एवं जीवनशैली में सरल परिवर्तनों द्वारा रोगों से दूर रहा जा सकता है। इसी उद्देश्य को ध्यन में रखते हुए, यहाँ पर आपके लिये बहुत सी उपयोगी जानकारी का संकलन है। जिनका उपयोग कर जीवन को स्वस्थ, दीर्धायु एवं संतुलित बनाया जा सकता है। Ayurveda, Vata dosha, Kapha dosha, Pitta dosha and Ayurveda treatment से सम्बंधित जानकारी आप यहाँ से ले सकते है।
लहसुन को मसाले का राजा कहा गया हैं अक्सर लहसुन का प्रयोग दाल में तड़का लगाने और हमारे खाने का स्वाद बढाने के लिये किया जाता हैं। लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि लहसुन की एक कली आपके शरीर के रोगो को खत्म कर सकती हैं।
सुबह खाली पेट हल्दी मिलाकर पानी पीने से हैरान कर देने वाले फायदे है। आज आप को बताते है कि, हल्दी वाला पानी पीने से हमारे शरीर को क्या-क्या फायदे होते है। इसे कैसे और कब पीना चाहिए और इसे लेते वक्त किन-किन बातो का ख्याल रखना चाहिये। ताकि आप इसका पूरा फायदा ले सके।